तीन दिनों की भी एक कहानी है जब अमृता और इमरोज साथ साथ नहीं रहते थे।यूंही एक दिन अमृता को इमरोज ने बताया कि उसे एक नौकरी मिल गई है, वह मुंबई जा रहे हैं। अमृता यह जान कर तो खुश हुई कि अपनी खुशी को सबसे पहले इमरोज ने उसी के साथ बांटा है लेकिन यह सोच का उदास हो गई कि इमरोज दूर चले जायेंगे। उस दिन अमृता ने आंखों की नमी को किताब के पीछे छिपा लिया, कहा कुछ नहीं। जाने में तीन दिन थे, अमृता ने इमरोज से कहा, अब ये तीन दिन मेरे हैं, इन्हें मैं अपने हिसाब से खर्च करूंगी।
बहुत बाद में उन तीन दिनों को अमृता की कलम ने कुछ यूं कहा
कलम ने आज गीतों का काफिया तोड़ लिया है
मेरा इश्क यह किस मुकाम पर आ गया है
उठो अपनी गागर से पानी की कटोरी दे दो
मैं राहों के हादसे उस पानी से धो लुंगी
सालों साल गुजर जाने के बाद इमरोज ने उन तीन दिनों को अपनी नज्म में कुछ यूं उतारा।
हम मस्त चल रहे
थे
यह बात तब की है
यह बात तब की है
जब मैं दिल्ली छोड़ कर
दूसरे शहर रवाना हो रहा था
वहां मुझे मेरी मर्जी का काम मिल रहा
था
जाने में अभी तीन दिन बाकी
जाने में अभी तीन दिन बाकी
थे
और तुमने कहा थाये तीन दिन अब सारे मेरे
और तुमने कहा थाये तीन दिन अब सारे मेरे
मौसम पीले फूलों का
था
सड़कें बाग बगीचे पीले फूलों की महक से सराबोर
सड़कें बाग बगीचे पीले फूलों की महक से सराबोर
थे
हमने सारा दिन पीले फूलों के बीच
हमने सारा दिन पीले फूलों के बीच
गुजारा
एक दूजे को चुपचाप देखते हुए
एक दूजे को चुपचाप देखते हुए
नजरों से एक दूसरे को
कुछ कहते कुछ सुनते हुए
पीले फूल हम पर बरस रहे
कभी हमारे होंठो
पर
कभी हमारे दिलों
कभी हमारे दिलों
पर
कभी हमारी सोचों
कभी हमारी सोचों
पर
वक्त को तो नहीं
वक्त को तो नहीं
लेकिन खामोशी को कहीं यह पता था
कि ये तीन दिन जिंदगी के
के
तीनकाल बन जाएंगे
26 comments:
बहोत ही बेहतरीन नज़्म बहोत खूब.....आपको भी ढेरो बधाई...
अर्श
सुन्दर पोस्ट!
रोचक प्रसंग चुना आपने
हम तक पहुँचाने के लिए आभार
अमृ्ता और इमरोज़ के प्रति आपका लगाव बहुत घनिष्ठ दिखता है
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
बस इतना की,
मुग्ध हुआ पढता गया और ख़तम होने के बाद भी और पढने की इच्छा बलवती होती चली गयी.
आगंक का इन्तजार और इस बेहतरीन लेखनी के लिए आभार.
रजनीश के झा
Bahut khub.
अब अमृता और इमरोज पर क्या कहूँ?????लाजवाब...अद्भुत...बेमिसाल....
नीरज
आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,
ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
यथार्थ सार्थक लाज़बाब इससे अधिक कुछ कहना अशक्य है
पीले फूल हम पर बरस रहे
कभी हमारे होंठो पर
कभी हमारे दिलों पर
कभी हमारी सोचों पर
कितनी ख़ूबसूरत हैं ये पंक्तियाँ जी, जैसे दिल की आँखें देख रही हों. बहुत ख़ूब !
बेहतरीन नज्म
वैसे अमृता और इमरोज साहब जी के बारे में आपका ज्ञान अच्छा खासा है इसे हमारे बीच प्रेषित करने के लिए आपका बारम्बार धन्यवाद
very nice.. liked to read you
आप जो प्रसंग चुन कर लिखती हैं और जिस तरह से लिखती हैं, उनमे अपने आप अमृता जी की गंध महसूस होती है,
बहुत समय बाद आप की कलम से इतना मोहक प्रसंग निकला बहुत अच्छा लगा
आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
is rochak rachnaa ke liye bdhaai
आप भारत का गौरव तिरंगा गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने ब्लॉग पर लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
होनी को पता था कि कविता और पेंटिंग की किसमत तीन दिनों में लिखनी है।..
aapka andaj-e-bayaN khoobsurat hai.
ni:sandeh aap aap ki kalam se avval darje ka sahity srijan hogaa.
aapne meri hoslaafzaaii ki ye meri khushkismatii hai..shukria dil se
dhanyawaad itni khubsoorat nazm padhwane ke liye.
khamosh muhabbat ki khamoshi ko koi khamosh dil hi jan sakta hai.............wah, bahut khoob.
हम आपके आभारी है , और आपके सुझाव , छत्तीसगढ के विकास में सहायक बने इसी आशा के साथ , हमें अपने सुझाव भेजते रहे.
धन्यवाद
cg4bhadas.com
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संपादक
main kya kahun , nishabd hoon , aur maun mein amrita imroz ke pyar ke ahsas ko ji raha hoon .. aaj hi imroz ji baaten hui... kuch amrita ji ke baaren me kahi gayi ..
in fact main ye kahun to atishyokti nahi gongi ki there are no great lovers than amrita -imroz in modern india.
aap yun hi likhti rahe .. aap ko bahut badhai..
vijay
bahut hi acchi gazal likhi hai aapne
BEHTAREEN.................bus...s
तीन दिन जिंदगी के
तीनकाल बन जाएंगे
Very Nice....
इश्क़ का सिखर हैं अमृता-इमरोज़ इनकी हर रचना जितनी बार भी पढ़ो नई लगती है।
धन्यवाद रचना पढ़वाने के लिए
LEDs, first developed in the early 1960s, produce light by moving electrons through a semiconductor.
Implementation of solar energy has environmental costs that
may hamper its application on large-scale operations to reduce its
impact. These chips directly convert electricity to light
without the use of a filament or glass bulb.
my page: Wandleuchten
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