कभी कभी कुछ बातें दिल पर पत्थर सी लग जाती हैं। कल दिल्ली हेड आफिस से फोन था। उधर से पूछा, "अमृता प्रीतम का लेख आपने ही भेजा था,"
"जी हां," मैंने कहा
"आप स्टाफर हैं या........"
"हां स्टाफर हूं वरिष्ठ संवाददाता , लेकिन आप क्यो पूछ रहे हैं, " मैंने सवाल किया
"हमें उस उस लेख की पेमेंट भिजवानी है "
"अरे, मैने वो लेख पेंमेंट के लिये नहीं लिखा है," एक दम मेरे मुंह से निकल गया।
फोन पर बात सुन कर मेरा दिल छोटा सा हो गया। लगा किसी ने मेरे दिल पर पत्थर मार दिया हो और वह दब सा गया हो। कुछ देर बाद मैंने ख़ुद ही सोचा की उन्हें क्या पता की मेरा और अमृता जी क्या रिश्ता है ?
दरअसल ,मैंने यह तो सोचा भी नहीं था कि अमृता जी के लेख लिखने में पेमेंट का भी सवाल उठेगा। वैसे भी मुझे मेरे लेख की पेमेंट इमरोज की तारीफ से मिल गई थी। किसी लेख की तारीफ इमरोज करें, इससे बढ़ कर कम से कम मेरे लिये कुछ नहीं हो सकता है।
इमरोज जितने अच्छे इंसान हैं उन्हें उतनी ही इंसानियम की कदर भी है। वो आम इंसान की तरह से इंसान नहीं हैं। मेरे लिये तो वे बहुत खास हैं। उन्होंने मेरी पंसदीदा लेखिका अमृता प्रीतम को इतना स्नेह दिया, अपना साथ दिया। अमृता ने भी जब इमरोज का साथ पकड़ा तो वे जमाने को भूल गईं। इमरोज ने मुझे एक अहम सवाल पूछने पर बताया , रिश्ता और विवाह दो अलग मुद्दे हें, रिश्ता विवाह से कहीं ऊपर होता है। विवाह टूट सकता है, बिखर सकता है, लेकिन रिश्ता हमेशा मन में रहता है, साथ रहता है। विवाह लोगों की भीड़ में एक रसम की तरह से ‘शुरू होता है जो कभी कभी कागज पर किये गये एक हस्ताक्षर से टूट जाता है। रिश्ते में ऐसा नहीं होता है। रिश्ते में जिस्म का साथ नहीं होता है , रिश्ता रूह का होता है। उन्होंने मुझे अपनी एक नज्म भी सुनायी जो उनकी आने वाली किताब में छप रही है। इस नज्म में रिश्तों का खूबसूरत अंदाज दिख रहा है।
सारे फूल
अपने अपने मौसम में ही खिलते हैं
कदरों कीमतों के फूल
हर पल खिलते हैं
फिर
जिस्म का साथ साथ नहीं होता है
कदरों कीमतों का साथ
ही साथ होता है
और ये साथ
हमेशा साथ रहता है