Thursday, December 4, 2008

फलक से उतरी बातें

प्यार करने वाले कुछ अलग होते हैं, उनकी बातें भी फलक से उतरी हुई सी लगती हैं। उनके भावों में महापुरुष आ कर बैठ जाते हैं जिन्हें सारे कालों का ज्ञान होता है। ऐसे ही पल का जिक्र जब इमरोज से किया तो बोले,

एक बार अमृता और मैं सड़क पर चले जा रहे थे, तब हम साथ साथ नहीं रहते थे। अमृता को न जाने क्या सूझी, रूकी और पूछने लगीं,

तू पहले वी किसे ना इंज तुरिया एं
(तुम पहले भी इस तरह से किसी के साथ चले हो )

मैंने कहा,

मैं तुरिया ते बोत हां पर किसे नाल जागिया
(चला तो बहुतों के साथ हूं लेकिन जागा किसी के साथ नहीं।)

मेरी बात सुन कर अमृता ने मुझे गौर से देखा , जैसे कुछ जानने और समझने का प्रयास कर रही हो, फिर कुछ मिनट बाद उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और वो मेरा हाथ पकड़ कर ऐसे चलने लगी जैसे उसने सारी हदे। सरहदें पर कर ली हो, उसके चेहरे पर एक अनोखा गर्व मैंने उस दिन महसूस किया। उस दिन एक गहरे रिश्ते ने जन्म ले लिया था।


आगे चल कर उनका यह रिश्ता ऐसा बना जो रगों में बहते खून की तरह हो गया। सच तो यह है कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसे रिश्ते को पहली बार महसूस किया था।


एक जगह अमृता ने लिखा भी है,रिश्ते भी बड़ी अजीब चीज हैं। इनके अर्थ भी अलग हैं। कोई रिश्ता गले में पहने हुए कपड़े की तरह से होता है जिसे कभी भी गले से उतारा जा सकता है पर कोई रिश्ता नसों में बहते हुए खून की तरह से होता है जिसके बिना इंसान जिंदा नहीं रह सकता है। कोई रिश्ता ऐसा भी होता है जो बदन की खुजली की तरह से होता है , नाखूनों से खरोंच कर उसे कोई जितना भी हटाना चाहे, उतना ही वह बदन की चमड़ी में रसे जाता है। रिश्तों की इतनी गहरी बयानी अमृता ने क्यों कर की, ये फिर कभी सही----

Monday, November 10, 2008

ऐसी थी मेरी अमृता

इमरोज को अमृता कितना चाहती थी, उन्हें किस रूप में देखती थी, इसके लिये किसी शब्दकोष में कोई शब्द उपलब्ध नहीं है। इएरोज अमृता के लिए क्या थे इसे आप महसूस कर सकते हैं . अमृता के कहे शब्दों में, ''वे चांद की परछाइयों में से रात के अंधेरे से उतरे और मेरे सपनों में चले ''''एक दिन उन्हें कोई घर ले आया। वे बंबई से लौटे एक पेंटर थे, सुंदर चित्र बनाते थे, उनका नाम इमरोज था। मुझे वे बिलकुल खमोश से लगे, जैसे कुछ बोलते ही न हों। फिर मुझे लगा, जैसे वे मुझसे कुछ कह रहे ''।

मैंने इमरोज से पूछा , आप क्या सोचते हैं अमृता के बारे , उनके वजूद के बारे में। वे हंस दिये और अपनी एक नज्म सुनाने लगे।
उन्होंने नज्म पंजाबी में सुनायी जिसे मैं हिंदी में अनुवाद कर प्रस्तुत रही हूं । नजम का नाम है ''मनचाही ''


सपना सपना हो कर
औरत हुई
और अपनी मर्जी का सोचा

फिक्र फिक्र हो के
कविता हुई
वारिस शाह को जगाया
और कहा
देख ले
अपने पंजाब को लहुलुहान

मोहब्बत मोहब्बत हो कर
राबिया हुई
किसी को भी
नफरत करने से इंकार किया
और अपने वजूद से बताया
कि मोहब्बत कभी नफरत नहीं करती

जिन्दगी जिंदगी हो कर
वो मनचाही हुई
मनचाहा लिखा
और मनचाहा जिया


पूछा, राबिया कौन थी, वे बोले, जिसने पवित्रा कुरआन से खिलाफत कर दी थी

Friday, October 31, 2008

फुल मोया पर महक न मोई

ब्लाग पर अकसर अमृता और इमरोज के बारे में लिखी गई पोस्ट पर जो कमेंट आते हैं उनमें इमरोज के होने या फिर उन जैसा होने पर ताज्जुब किया जाता है। कुछ उन्हें बहुत उम्दा इंसान भी बताते हैं मैंने इमरोज से पूछा, क्या आप जानते हैं कि अमृता को पढ़ कर कुछ ऐसी भी हैं जो अपने हिस्से के इमरोज को ढूढ़ती हैं। वे अपनी सरल मुसकान होठों पर ला कर कहते हैं, इसके लिये पहले अमृता होना पड़ता है। वे सच कहते हैं, आज की औरत भले ही कितना भी आगे जा चुकी है, तरक्की कर चुकी है, लेकिन वह अपनी मर्जी से जीने के लिये सोच भी नहीं सकती है। अगर उसने ऐसा किया तो उसे समाज की नाराजगी झेलनी पड़ती है। अमृता होना आसान नहीं, बहुत कठिन है। हालात की तल्लखियों को झेलना आसान नहीं होता है, अमृता ने झेला, ओढ़ा और अपने भीतर कहीं जज्ब कर लिया जो समय समय पर सृजन के रूप में अक्षर अक्षर होता रहा।
इमरोज को जब अमृता मिलीं ......उस समय दोनों के बीच न कोई सवाल था न जवाब। बस एक अहसास था जिसे दोनों रूह से महसूस करते थे। इमरोज कहते हैं , जो एक दूसरे को समझते हैं, पसंद करते हैं, वे सवाल कहां करते हैं। जब सवाल नहीं तो जवाब की दरकार कहां रह जाती है। इमरोज के अल्फाजों में.........

एक बार
वक्त ने पूछा
ये तेरी क्या लगती है
मैंने हंस कर वक्त से कहा
अच्छा लगता
अगर सवाल ये होता
ये तेरी क्या क्या नहीं लगती है ??

आज के दिन अमृता इस जहाँ से हमेशा के लिए चली गईं ......
ख़ुद ही ये भी कह गईं

कैसी है इसकी खुशबू
फूल मुरझा गया पर महक नहीं मुरझाई
कल होठों से आई थी
आज आंसुओं से आई है

Wednesday, October 22, 2008

मुझे एक अनकही कविता नजर आती है

ब हम किसी से प्यार करते हैं तो उसे जताने या बताने की जरूरत नहीं होती है, वो अपने आप गहराता है और एक खुशबू की तहर से हमारे आसपास बिखर रहता है। कई बार हमारे नजदीक से गुजरने वाले भी उस भाव को जानने लगते हैं । सज्जाद हैदर अमृता के काफी अच्छे दोस्त थे। यह बात इमरोज को पता थी। एक बार इमरोज और अमृता ने मिल कर सज्जाद को खत लिखा तो सज्जाद ने जवाब दिया, ''मेरे दोस्त मैं कभी तुमसे मिला तो नहीं लेकिन अमृता के खतों से जो मैंने तुम्हारी तस्वीर बनायी है, उससे मैं तुम्हे जानने लगा हूं, तुम खुशनसीब हो, मैं तुम्हें सलाम करता हूं।'' अमृता इमरोज से कभी कुछ छिपाती नहीं थी। अपनी मौत से पहले सज्जाद ने अमृता को लिखे सारे खत वापस लौटा दिये। बात कुछ भी नहीं थी, अमृता के दिल में पता नहीं क्या आया, अमृता ने इमरोज को कहा, ''लो पढ़ लो '' इमरोज ने कहा ''नहीं, इसकी जरूरत नहीं है।'' अमृता ने कहा , ''तो जला दो, '' इमरोज ने जला दिये। इमरोज कहते हैं, अमृता ने अपने प्यार का इजहार कभी खुले 'शब्दों में नहीं किया, न ही मुझे इसकी जरूरत पड़ी। इमरोज और अमृता का रिश्ता अनोखा रिश्ता था जिसकी न तब कोई परिभाशा थी न आज। दरअसल, अमृता ने जो दुशाला ओढ़ा , वह सिर्फ़ इमरोज की मोहब्बत से महकता था। मेरी जब भी इमरोज से बात होती है, वे कहते हैं, ''मैं ठीक हूं,खुश हूं'' लेकिन मन कई सवाल करता है और इमरोज को देख कर उनके जवाब मिल जाते हैं .इमरोज कहते हैं

ओ जदों वी मैनूं मिलन आंदी है
मैंनूं इक अनलिखी कविता दिसदी है
मैं इस अनलिखी कविता नूं किन्नी वार लिख चुका हाँ
फेर वी एह कविता अनलिखी रह जांदी है
कि पता
एह अनलिखी कविता लिखन वास्ते न होवे
सिर्फ मनचाही जिंदगी वास्ते होवे
(हिंदी अनुवाद)
वो जब भी मुझे मिलने आती है
मुझे एक अनकही कविता नजर आती है
मैं इस अनलिखी कविता को कई बार लिख चुका हूं
फिर भी ये कविता अनलिखी रहजाती है
क्या पता
ये अनलिखी कविता
लिखने के लिये न हो
सिर्फ मनचाही जिंदगी के लिये हो

Saturday, October 18, 2008

वे रब तेरा भला करे

प्रेम के अर्थ कब क्या हो जाएं, कुछ नहीं कहा जा सकता। न जाने किस अर्थ को मानते हुए एक बार अमृता जी ने इमरोज को कह दिया, 'तुम तो अभी जवान हो, जाओ कहीं ओर जा कर बस जायो। तुम अपने रास्ते जाओ और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।' इमरोज ने जवाब दिया,' तुम जानती तो हो कि मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता है, और मेरा अभी मरने का इरादा नहीं है।'अमृता जी कभी कभी दिल से बहुत कमजोर हो उठती, ऐसे ही एक पल में उन्होंने इमरोज को कह दिया'जाओं, तुम दुनिया देख कर आयो, देखो तो इसमें तुम्हारे लिये क्या क्या रखा हुआ है। अगर दुनिया देख कर लौट आये और तुमने मेरा साथ चाहा तो मैं वैसा ही करूंगी जैसा तुम कहोगे 'इमरोज उठे और कमरे को चक्कर काट कर अमृता के पास आ बैठे, बोले, लो मैं दुनिया घूम आया, अब बोलो क्या कहती हो?सालों बाद जब इस बात को इमरोज को मैंने याद दिलाया तो वे हंस दिए क्योंकि आज तो बंदा अगले कदम या अगली गली जा कर रिश्ते को भूल जाता है। मैंने उनसे पूछा कि अब जमाने को क्या हो गया है्, क्यों घट रही है रिश्तों की कद्र, कहां गये कद्रों कीमतों वाले रिश्ते, मेरे सवाल के बाद उन्होंने एक नज्म सुनायी,

अमृता जब भी खुश होती
मेरे छोटी छोटी बातों पर
तो वो कहती
वे रब तेरा भला करे

और मै जवाब में
कहता
मेरा भला तो कर भी दिया
रब ने
तेरी सूरत में आ कर

Thursday, October 2, 2008

हां! प्यार की तस्वीर देखी जा सकती है.......

जब हम प्यार में होते हैं तो कभी कभी अंदर से काफी कमजोर हो जाते हैं, यह कमजोरी भावनाओं में दिखना शुरू हो जाती है। इसे मैंने तब महसूस किया जब किसी ने मेरे छोटे बेटे के लिये बताया कि इसके साथ कोई दुर्घटना होगी। मैं डर गई। मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया, दिल ने ज्यादा सोचना शुरू कर दिया। कई पंडितों के चक्कर काटे, सभी ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है। उसके ग्रह ठीक हैं। कईयों ने उपचार भी बताए, वे भी मैंने कर दिये लेकिन मन तो डर ही गया था एक बार को। इसके लिये मुझे साइक्लोजिस्ट से अपनी अपनी कांउसलिंग भी करनी पड़ी, ताकि दिमाग काम करे, दिल जरा कम सोचे। अब सोचती हूं, सब की चिंता रब करेगा, मैं क्यों चिंता करूं ? ऐसा ही अमृता प्रीतम जी के साथ भी हुआ। इमरोज के साथ रहने से पहले उन्होंने ज्योतिषी से पूछा, ये रिश्ता केसा रहेगा? ज्योतिशी ने कहा,ढायी घंटे, वे चौकीं, फिर अंदर से उन्हें लगा कि ज्योतिशी का हिसाब कच्चा है क्योंकि उसके पास प्रेम की नजर ही नहीं है। प्रेम के हिसाब से चला रिश्ता आज भी जिंदा है, सच तो यह था कि वे इमरोज को खोना नहीं चाहती थी। वे कभी कभी अपने उपन्यासों और नज्मों में भी ऐसे सवाल छोड़ती रहीं हैं जो यह बताते हैं कि व्यक्ति प्यार में काफी कमजोर भी हो सकता है। एक पल में प्यार आपका संबल है तो दूसरे ही पल खो जाने के भय से कहीं मन में कमजोरी भी आती है। इमरोज को तो इस रिश्ते पर पूरा भरोसा था। अब यह रिश्ता अक्षरों में जिंदा है। इस नज्म में प्यार के बारे में इमरोज कहते............


प्यार में

मन कवि हो जाता है

ये कवि

कविता लिखता नहीं

कविता जीता है

सारे शब्द सारे रंग

मिल कर भी प्यार की तस्वीर नहीं बना पाते है।

हां! प्यार की तस्वीर देखी जा सकती है

मोहब्बत जी रही जिंदगी के आइने में

Wednesday, September 24, 2008

और वक्त पास खड़ा देखता रहता.........

मैंने जितना भी अमृता प्रीतम जी के बारे में जाना, अब उतना ही इमरोज जी के बारे में भी जानने का जी चाहता है। वैसे भी अमृता का जिक्र हो तो इमरोज का जिक्र आना लाजमी ही है। अमृता जी के जरिये ही जाना कि इमरोज पंजाब के रहने वाले हैं। पर यह कभी नहीं जाना कि वे पंजाब के किस स्थान के रहने वाले हैं । कल अचानक इमरोज से बात करने का मन हुआ जाने से पहले काल किया तो पता चला कि वे अमृतसर में हैं। मैंने पूछा, वहां कैसे, उन्होंने बताया , मैं तो अमृतसर का ही रहने वाला हूं। मैंने कहा, अरे आप तो मेरे "होम टाउन"पहुंचे हुए हैं। मेरा जन्म अमृतसर हुआ है , वे बड़े खुश हुए यह जानकर कि मेरा अमृतसर से रिश्ता है। अमृतसर के बारे में वे कई बातें बताने लगे कि वहां उनके भाई हैं, वे अमृतसर खासतौर पर भाई की पोती के जन्मदिन पर गये हुए थे। जब फोन पर बात हो रही थी तो पीछे से बच्चों की प्यारी प्यारी आवाजें भी आ रही थी। इमरोज की एक नज्म जो उनकी अगली किताब में आने वाली है। आप भी पड़ें इस नज्म को .......

एक वक्त था जब हमारे पास
सिर्फ़ एक शाम होती
हम रोज शाम के मध्यम हो रहे रंगों में
चलते रहते -----चुपचप
और वक्त पास खड़ा देखता रहता.........
जब हमने हालात को पार कर लिया
वक्त भी हमारे साथ आ मिला........
आज
सुबह के रंगों में दोपहर के रंग
दोपहर के रंगों में शाम के रंग
और शाम के रंगों में रात के रंग......
चांद तारों के रंग मिल कर
जिंदगी के आंगन में जिदगी के साथ
रोज खेलते रहते हैं......

Wednesday, September 17, 2008

कदरों कीमतों के फूल हर पल खिलते हैं

कभी कभी कुछ बातें दिल पर पत्थर सी लग जाती हैं। कल दिल्ली हेड आफिस से फोन था। उधर से पूछा, "अमृता प्रीतम का लेख आपने ही भेजा था,"
"जी हां," मैंने कहा
"आप स्टाफर हैं या........"
"हां स्टाफर हूं वरिष्ठ संवाददाता , लेकिन आप क्यो पूछ रहे हैं, " मैंने सवाल किया
"हमें उस उस लेख की पेमेंट भिजवानी है "
"अरे, मैने वो लेख पेंमेंट के लिये नहीं लिखा है," एक दम मेरे मुंह से निकल गया।
फोन पर बात सुन कर मेरा दिल छोटा सा हो गया। लगा किसी ने मेरे दिल पर पत्थर मार दिया हो और वह दब सा गया हो। कुछ देर बाद मैंने ख़ुद ही सोचा की उन्हें क्या पता की मेरा और अमृता जी क्या रिश्ता है ?
दरअसल ,मैंने यह तो सोचा भी नहीं था कि अमृता जी के लेख लिखने में पेमेंट का भी सवाल उठेगा। वैसे भी मुझे मेरे लेख की पेमेंट इमरोज की तारीफ से मिल गई थी। किसी लेख की तारीफ इमरोज करें, इससे बढ़ कर कम से कम मेरे लिये कुछ नहीं हो सकता है।
इमरोज जितने अच्छे इंसान हैं उन्हें उतनी ही इंसानियम की कदर भी है। वो आम इंसान की तरह से इंसान नहीं हैं। मेरे लिये तो वे बहुत खास हैं। उन्होंने मेरी पंसदीदा लेखिका अमृता प्रीतम को इतना स्नेह दिया, अपना साथ दिया। अमृता ने भी जब इमरोज का साथ पकड़ा तो वे जमाने को भूल गईं। इमरोज ने मुझे एक अहम सवाल पूछने पर बताया , रिश्ता और विवाह दो अलग मुद्दे हें, रिश्ता विवाह से कहीं ऊपर होता है। विवाह टूट सकता है, बिखर सकता है, लेकिन रिश्ता हमेशा मन में रहता है, साथ रहता है। विवाह लोगों की भीड़ में एक रसम की तरह से ‘शुरू होता है जो कभी कभी कागज पर किये गये एक हस्ताक्षर से टूट जाता है। रिश्ते में ऐसा नहीं होता है। रिश्ते में जिस्म का साथ नहीं होता है , रिश्ता रूह का होता है। उन्होंने मुझे अपनी एक नज्म भी सुनायी जो उनकी आने वाली किताब में छप रही है। इस नज्म में रिश्तों का खूबसूरत अंदाज दिख रहा है।
सारे फूल
अपने अपने मौसम में ही खिलते हैं
कदरों कीमतों के फूल
हर पल खिलते हैं
फिर
जिस्म का साथ साथ नहीं होता है
कदरों कीमतों का साथ
ही साथ होता है
और ये साथ
हमेशा साथ रहता है

Wednesday, September 10, 2008

वो आज भी मेरे साथ है

इस ब्लॉग को मैंने अमृता प्रीतम जी के जन्मदिन पर शुरू किया था...दो पोस्ट के बाद यहाँ लिखना संभव नहीं हुआ।

खैर.....

मैंने एक लेख हिन्दुस्तान के मयूरपंख के लिए लिखा जो इमरोज से हुई बातचीत पर आधारित है...इसमे एक नज्म भी है जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया....ओ अज्ज मेरे वि नाल है ( वो आज भी मेरे साथ है )

उस कविता को भी मेने लेख में शामिल किया ये लेख ३१ अगस्त के हिन्दुस्तान के सभी एडिशन में लेकिन छपा है.... सोचती इसे आप को पड़ा दूँ ......आपको कैसा लगा ?????और हाँ .....इमरोज से हुई कई बातें भी आपसे शेअर करनी है .....लेकिन अगली बार .....

Tuesday, September 2, 2008

सच्ची कहानियों के सच्चे किरदार


अकसर प्यार को निभाने के किस्से कहानियां किताबों में पढ़ते हैं लेकिन जब सच्चा प्यार करने वाले और उसे निभाने वाले सामने हों तो उस पल को जज्ब करना आसान नहीं होता है। कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। मैं जब पहली बार अमृता प्रीतम जी और इमरोज जी से मिली तो उनका एक दूसरे के लिये प्यार मेरे दिल का छू गया। उनके बारे में बहुत कुछ पढ़ा था, उन कहानियों के किरदार मेरे सामने थे। मैं इस पल को अपने भीतर कहीं छिपा कर रख लेना चाहती थी क्योंकि वहां बस प्यार ही प्यार था। दरसअसल, उन दोनों की आंखों में एक दूसरे लिये जो भाव थे, उसे जानने के लिये उन जैसे का दिल होना जरूरी है। मेरे लिये सब कुछ अजीब लेकिन अर्थपूर्ण था। अमृता के कमरे में एक घड़ी रखी थी, जिस पर कुछ पंक्तियां लिखी थी। समय को रोक कर उस पर नज्म लिखना, कुछ देर बाद मेरी समझ में आ गया। जहां दो प्यार करने वाले रहतेे हैं ,उनके लिये समय भी ठहरा रहता है। घर में सब ओर अमृता और इमरोज दिखायी दे रहे थे। कहीं अमृता की नज्में तो कहीं नज्मों के साथ इमरोज की पेंटिंग। दोस्ती और मोहब्बत की अनोखी दुनियां से मेरा सामना हो रहा था। मैं हर चीज को ध्यान से देख कर यह यकीन करना चाह रही थी कि ये उसी घर की दीवारें हैं जिसके किस्से मैने किताबों पढ़ें है। यह वही घर में जिसमें इसी सदी में प्यार करने वाले दो लोग रहते हैं, अमृता और इमरोज। अमृता जी काफी कमजोर और बीमार दिखायी दे रही थीं। वे लेटी हुई थी, मैंने उन्हें हाथ जोड़ कर अभिवादन किया तो उन्होंने ने भी स्नेह से अभिवादन स्वीकारा। मैंने उनकी कई तस्वीरें किताबों में देखी थी, मन ही मन उन तस्वीरों से उनका चेहरा मिला रही थी लेकिन वे उन तस्वीरों से भी ज्यादा सुंदर लग रही थी, बीमारी की हालत में भी। गोरी रंगत, कोमल भाव लिये चेहरा, एकदम नाजुक सी उंगलियां। सोचने लगी कि इतनी कोमल महिला ने कैसे जमाने को एक तरफ रख कर इतने बड़े बड़े फैसले लिये, न भूलने वाला साहित्य रच दिया। रस्मों रिवाज की चादर को तह कर अपने हिसाब से जिंदगी जी।
मन में धकड़पकड़ मची हुई थी। जो सवाल पूछने के लिये नोटिंग की थी, वह तो मैं बैग से निकाल ही नहीं पा रही थी। एक दूसरे संसार में आ कर मैं अभिभूत थी।
फिर,
उनसे कई मुद्दों पर बातें हुई। वो सब मैं अपनी पिछली पोस्ट पर लिख चुकी हूं।
मेरा मन नहीं भरा था लेकिन अमृता बातचीत से काफी थक चुकी थी। इमरोज बोले, माजां थक गई है, इसे आराम चाहिए। इमरोज अमृता को इसी नाम से बुलाते हैं। नीचे की गैलरी में आ कर फिर इमरोज से भी काफी देर बातें हुई।
वो मुलाकात मेरी जिंदगी में अहम और यादगार पल हैं।
पिछले दिनों दिल्ली आयी तो सोचा इमरोज मिलती चलूं।
मुलाकात से पहले सोचती आ रही थी कि पता नहीं अपनी मोहब्बत के बिना इमरोज कैसे होंगे?
इमरोज से मिल कर नहीं लगा कि वे अमृता के बिना जी रहे हैं, फिर भी पूछ बैठी, कैसे हैं आप , अमृता के बिना, इमरोज बोले, वो गई कहां हैं, वो यहीं है इसी घर में, पिछले पचास साल से यही है मेरे साथ।
मैने पूछा, अमृता जी का जन्म दिन आ रहा है, क्या खास होगा। इमरोज बोले, हमने जन्मदिन को कभी खास तरीके से नहीं मनाया। मांजा को दिखावे से सख्त एतराज रहा है,सो अब दिखावा करने को कोई मतलब नहीं रह जाता।
बोले, अकसर लोग अपनी किताब की प्रस्तावना कराते हैं, किसी खास से लेकिन अमृता को ये भी पसंद नहीं था। जब भी किताब छपती, हम किताब ले आते, रास्ते से फूल खरीदते, किताब को फूल पर रख कर ले आते, यह काम
मेरा ही होता था। मुझे तो ऐसे लगता जैसे अमृता को फूलों पर बिठा कर ला रहा हूं।
इमरोज पेंटिंग करते थे लेकिन फिर नज्म कैसे लिखने लगे, यह अगली बार बतायूंगी
लेकिन एक बात का जिक्र करना चाहूंगी। वहां से लौट कर मैंने अपने दिल्ली आफिस में बात की और बताया कि मैं अमृता जी के जन्म दिन पर कुछ भेज रही हूं।
वह लेख हिंदुस्तान के मयूरपंख पेज पर 31 अगस्त को छपा। मेरे लिये अमृता जी के बारे में लिखना बेहद खास था लेकिन इससे भी खास रहा, इमरोज ने फोन कर बताया ,
´आज किसी ने बताया कि हिंदुस्तान में कुछ छपा है अमृता के बारे में , सो मैने अखबार मंगवाया और पढ़ा। देखा तो आपका लेख था। काफी अच्छा लिखा है आपने।`
मेरे लिये अपनी तारीफ और वह भी इमरोज के मुंह से, बड़ा अनुभव है। यह भी खास रहा कि इस लेख को अहमद फराज के लेख के साथ ही स्थान मिला, फराज साहब का 25 अगस्त को देहांत हुआ हैं। इस बात को इमरोज ने नोटिस लिया और मुझसे शैअर भी किया । अहमद फराज का लेख कवि केदार नाथ जी की ओर से रहा। वैसे अमृता के साथ हर पल कुछ अनोखा ही होता रहा है, जग से अलग थी वे।

Sunday, August 31, 2008

जन्मदिन मुबारक हो...... अमृता जी




अमृता जी! जन्म दिन मुबारक हो, आप जहां भी होंगी, तारों की छांव में, बादलों की छांव में ,सब कुछ देख रही होंगी, आपको मेरी और आपके सभी चाहने वालों की ओर से जन्म दिन मुबारक।


आज मुझे वह दिन भी याद आ गया जब मैं अमृता से मिलने उनके निवास हौसखास गई थी। उस दिन वे बहुत बीमार थी या यूं कहिए कि वे बीमार ही चल रही थी उन दिनों, ज्यादा बोल नहीं पा रही थी लेकिन फिर भी उन्होंने मुझे कुछ पल दिये, वो कुछ पल मेरे लिये सदैव अनमोल रहेंगे। यह मुलाकात मैं अकेले नहीं करना चाहती थी , लेकिन जब मिलने की घड़ी आयी तो मैं अकेले ही गई। मैंने इमरोज और अमृता दोनों से बातें की, यूं समझ लें कि उन पलों में हर बात जानने के लिये जल्दबाजी महसूस हो रही थी। उनके लेखन के बारे में , उनके और इमरोज के साथ साथ जीवन गुजारने के बारे में , उनके परिवार के बारे में, दुनिया की सोच के बारे में। सभी बातें हुई भी। उन्होंने औरत, प्यार, संबध और समाज सभी पर खुल कर कहा, उनके इस कहने में इमरोज ने काफी मदद की क्योंकि वे बोल नहीं पा रही थी। वैसे भी अमृता का जिक्र हो, इमरोज का न हो, ये कैसे हो सकता है?


वो सब मैंने सखी के अप्रैल २००३ के अंक में एक आर्टीकल "अपनी बात" में समेटा। सखी जागरण ग्रुप की महिला मैगजीन है। उस समय मैं जागरण ग्रुप के साथ ही जुड़ी थी। इसे आप भी पढ़ सकते हैं।


सालों बाद ,अभी पिछले सप्ताह फिर मेरी मुलाकात इमरोज से हुई, बहुत सी बातें हुई उनसे। मेरा फोकस था कि वे अमृता के बगैर कैसे समय बिता रहे हैं, उन्होंने मेरे इस जुमले पर एतराज किया, कहा, अमृता को पास्ट टेंस में मत कहो, वो मेरे साथ ही है, उसने जिस्म छोड़ा है, साथ नहीं। मैं कहीं भीतर तक उनकी इस बात से अभिभूत हो गई। फिर मन में ख्याल आया, अरे मैं तो आज भी अकेली ही आयी हूं। बेइंतहा मोहब्बत की कहानी को जान कर उनके सच्चे किरदारों को मिल कर ´कुछ` याद आ जाना लाजमी है। आज कहां है ऐसे प्यार करने वाले????


बहुत बातें हुई, बहुत देर बातें हुई, वो मैं अगली पोस्ट में लिखूंगी।


एक बात और .... इस ब्लॉग की शुरुआत शायद इसी पोस्ट के साथ होनी थी ....ये इस ब्लॉग पर पहली पोस्ट है ....कुछ खास हस्तियां....इस ब्लॉग में पहला कदम अमृता का....... आपको कैसा लगा ?