जब हम किसी से प्यार करते हैं तो उसे जताने या बताने की जरूरत नहीं होती है, वो अपने आप गहराता है और एक खुशबू की तहर से हमारे आसपास बिखर रहता है। कई बार हमारे नजदीक से गुजरने वाले भी उस भाव को जानने लगते हैं । सज्जाद हैदर अमृता के काफी अच्छे दोस्त थे। यह बात इमरोज को पता थी। एक बार इमरोज और अमृता ने मिल कर सज्जाद को खत लिखा तो सज्जाद ने जवाब दिया, ''मेरे दोस्त मैं कभी तुमसे मिला तो नहीं लेकिन अमृता के खतों से जो मैंने तुम्हारी तस्वीर बनायी है, उससे मैं तुम्हे जानने लगा हूं, तुम खुशनसीब हो, मैं तुम्हें सलाम करता हूं।'' अमृता इमरोज से कभी कुछ छिपाती नहीं थी। अपनी मौत से पहले सज्जाद ने अमृता को लिखे सारे खत वापस लौटा दिये। बात कुछ भी नहीं थी, अमृता के दिल में पता नहीं क्या आया, अमृता ने इमरोज को कहा, ''लो पढ़ लो '' इमरोज ने कहा ''नहीं, इसकी जरूरत नहीं है।'' अमृता ने कहा , ''तो जला दो, '' इमरोज ने जला दिये। इमरोज कहते हैं, अमृता ने अपने प्यार का इजहार कभी खुले 'शब्दों में नहीं किया, न ही मुझे इसकी जरूरत पड़ी। इमरोज और अमृता का रिश्ता अनोखा रिश्ता था जिसकी न तब कोई परिभाशा थी न आज। दरअसल, अमृता ने जो दुशाला ओढ़ा , वह सिर्फ़ इमरोज की मोहब्बत से महकता था। मेरी जब भी इमरोज से बात होती है, वे कहते हैं, ''मैं ठीक हूं,खुश हूं'' लेकिन मन कई सवाल करता है और इमरोज को देख कर उनके जवाब मिल जाते हैं .इमरोज कहते हैं
ओ जदों वी मैनूं मिलन आंदी है
मैंनूं इक अनलिखी कविता दिसदी है
मैं इस अनलिखी कविता नूं किन्नी वार लिख चुका हाँ
फेर वी एह कविता अनलिखी रह जांदी है
कि पता
एह अनलिखी कविता लिखन वास्ते न होवे
सिर्फ मनचाही जिंदगी वास्ते होवे
(हिंदी अनुवाद)
वो जब भी मुझे मिलने आती है
मुझे एक अनकही कविता नजर आती है
मैं इस अनलिखी कविता को कई बार लिख चुका हूं
फिर भी ये कविता अनलिखी रहजाती है
क्या पता
ये अनलिखी कविता
लिखने के लिये न हो
सिर्फ मनचाही जिंदगी के लिये हो
25 comments:
मनविन्दर जी,
सचमुच प्यार के कुछ पल सिर्फ़ सहेजने के लिये ही बने होते हैं..उन्हें आम करके रुसवा नहीं किया जा सकता. शायद यही सोच कर वह रचना लिखी नहीं गई..
मनविदंर जी
बहुत ही अच्छी अच्छी पोस्ट पढवाने के लिए आपका शुक्रिया
as per the word of u r profile
quality of thoughts matters
regards
आप सभी कहते हो इमरोज हैं इसी जमीन पर चलते फिरते से. ये सच नहीं लगता हमेशा दिमाग कहता है ये हो ही नहीं सकता कि इस जमीं पर कोह इमरोज रह पाए.. दिल की कौन सुनता है. यकीन है इमरोज होंगे यहीं कहीं हमेशा हमारे आसपास. जैसे अभी जब आप लिख रही थीं तो इमरोज गुनगुना रहे थे अमृता के गीत बिल्कुल आपके करीब..
शुक्रिया.. यादों की अंधेरी कोठरी में रोशनी के लिए..
इस तरह का लिखा लिख के भी अनलिखा रह जाता है ..
अमृता को ही ऐसे इमरोज मिल सकते है !
बेहतरीन पोस्ट। काश! ऐसे कई इमरोज हों इस दुनियां में।
Jaisa ki Dr Anurag ne kaha, Aise imroz kisi amrita ko hi mil sakte hain. Aaj aise logon ko dhundhna padta hai.
Manvindarji, aapne ek achhi post padhwai, dhanywad.
सचमुच इमरोज और अमृता के प्यार की मिसाल नहीं।
उनके नायब प्यार की खुशबू पाठकों तक पहुँचने के लिए शुक्रिया.
बहुत अच्छा लिखा है.
मनविन्दर जी ,नमस्कार !
1981 में रसीदी टिकट पढ़ी थी ।इस लेखमाला के द्वारा आपने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है ।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
पड़ते हुवे ऐसा लगा लगा
जैसे ठंडी हवा का झोंका मेरे करीब से गुज़र गया
दिल को छू लेने वाले पल..........
SALAM...........
पुनः एक बेहतरीन पोस्ट के लिए आभार. हर बार आनन्द आ जाता है. इमरोज, अमृता विषय ही ऐसा है....
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाऐं.
मैंने भी "अमरता इमरोज़" को पढा है साथ ही थोडा सा अपने भावों को उकेरा भी है.
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आपको इनकी बाबत पढ़के बहुत अच्छा लगा...सचमुच प्यार प्यार ही है.
bahut sundar post.
aabhaar.
दीपावली के पावन पर्व पर आपको हार्दिक बधाई!
वाह मनविंदर जी आजकल अच्छा लिख रही हैं. सुना है कि पंत जी बनारसी हो गए. आपका बड़ा बच्चा क्या कर रहा है इन दिनों. बहू के परिवार वाले अब ठीकठाक तो हैं.
दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएं...
दीपावली के पावन पर हार्दिक शुभकामना .
दीपावली की शुभकामनाएँ।
हमारे मन का दीप खूब रौशन हो और उजियारा सारे जगत में फ़ैल जाए इसी कामना के साथ दीपावली की आप सबको बहुत बहुत बधाई।
manvinder ji
aap itna achha kise likh leti hain. imroz ka zikr jab bhi chidta hai pata nahin kyon beete hue lamhon ki yaad aa jati hai
मेरी तरफ़ से सभी ब्लौगरों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं सभी लोग ऐसे ही लिखते रहे...
आपकी रचना है सुन्दर मानविंदर भीममबर
है बहुत आनंददायक यह ब्लागिंग का सफर
आपने प्रकट किया है मेरी कविता पर विचार
आपकी कृपा है यह और आपका हुसने नज़र
डा अहमद अली बर्क़ी आज़मी
आज इंटर्नेट पे है हर चीज़ का दारो मदार
डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी
खोले हैँ इंफ़ार्मेशन टेक्नोलोजी ने ये द्वार
आज इंटर्नेट पे है हर चीज़ का दारो मदार
हो गए हैँ बुद्धिजीवी और लेखक हाईटेक
व्यक्त करते हैँ ब्लागस्पाट पर अपने विचार
है नई वेबसाइटोँ मे आज पर्फस्पाट भी
काम है जिसका ब्लागिंग मे नेहायत शानदार
लिख रहा है लेख अपने ब्लागवाणी पर कोई
है किसी को सिर्फ बस चिट्ठाजगत पर एतबार
लेखकोँ मे बढ रहा है अब ब्लागिंग का चलन
पाठकोँ को रहता है हर वक्त इसका इंतेज़ार
आधुनिक युग मेँ यह है प्रचार का साधन नया
विश्व मेँ है अब ब्लागिंग एक उत्तम कारोबार
हो प्रदूषण की समस्या या ग्लोबल वार्मिंग
सामयिक विषयोँ पे मैँ भी व्यक्त करता हूँ विचार
है सशक्त अभिव्यक्ति का यह माध्यम अहमद अली
इस लिए मैँने किया है आज इसको अख़्तेयार
आपको दीपावली की अनेक बधाइयाँ।
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