Wednesday, September 17, 2008

कदरों कीमतों के फूल हर पल खिलते हैं

कभी कभी कुछ बातें दिल पर पत्थर सी लग जाती हैं। कल दिल्ली हेड आफिस से फोन था। उधर से पूछा, "अमृता प्रीतम का लेख आपने ही भेजा था,"
"जी हां," मैंने कहा
"आप स्टाफर हैं या........"
"हां स्टाफर हूं वरिष्ठ संवाददाता , लेकिन आप क्यो पूछ रहे हैं, " मैंने सवाल किया
"हमें उस उस लेख की पेमेंट भिजवानी है "
"अरे, मैने वो लेख पेंमेंट के लिये नहीं लिखा है," एक दम मेरे मुंह से निकल गया।
फोन पर बात सुन कर मेरा दिल छोटा सा हो गया। लगा किसी ने मेरे दिल पर पत्थर मार दिया हो और वह दब सा गया हो। कुछ देर बाद मैंने ख़ुद ही सोचा की उन्हें क्या पता की मेरा और अमृता जी क्या रिश्ता है ?
दरअसल ,मैंने यह तो सोचा भी नहीं था कि अमृता जी के लेख लिखने में पेमेंट का भी सवाल उठेगा। वैसे भी मुझे मेरे लेख की पेमेंट इमरोज की तारीफ से मिल गई थी। किसी लेख की तारीफ इमरोज करें, इससे बढ़ कर कम से कम मेरे लिये कुछ नहीं हो सकता है।
इमरोज जितने अच्छे इंसान हैं उन्हें उतनी ही इंसानियम की कदर भी है। वो आम इंसान की तरह से इंसान नहीं हैं। मेरे लिये तो वे बहुत खास हैं। उन्होंने मेरी पंसदीदा लेखिका अमृता प्रीतम को इतना स्नेह दिया, अपना साथ दिया। अमृता ने भी जब इमरोज का साथ पकड़ा तो वे जमाने को भूल गईं। इमरोज ने मुझे एक अहम सवाल पूछने पर बताया , रिश्ता और विवाह दो अलग मुद्दे हें, रिश्ता विवाह से कहीं ऊपर होता है। विवाह टूट सकता है, बिखर सकता है, लेकिन रिश्ता हमेशा मन में रहता है, साथ रहता है। विवाह लोगों की भीड़ में एक रसम की तरह से ‘शुरू होता है जो कभी कभी कागज पर किये गये एक हस्ताक्षर से टूट जाता है। रिश्ते में ऐसा नहीं होता है। रिश्ते में जिस्म का साथ नहीं होता है , रिश्ता रूह का होता है। उन्होंने मुझे अपनी एक नज्म भी सुनायी जो उनकी आने वाली किताब में छप रही है। इस नज्म में रिश्तों का खूबसूरत अंदाज दिख रहा है।
सारे फूल
अपने अपने मौसम में ही खिलते हैं
कदरों कीमतों के फूल
हर पल खिलते हैं
फिर
जिस्म का साथ साथ नहीं होता है
कदरों कीमतों का साथ
ही साथ होता है
और ये साथ
हमेशा साथ रहता है

25 comments:

जितेन्द़ भगत said...

अच्‍छा लगता है जानकर कि‍ आज भी लि‍खना कुछ लोगों के लि‍ए एक अराधना है, एक जज्‍बे को नि‍भाते जाने का जुनून है, आपसे कई लोगों को प्रेरणा मि‍लेगी।

अब तक वि‍वाह को रि‍श्‍ता का ही एक रूप मानता था, पर रि‍श्‍ता के लि‍ए इतनी खूबसूरत बात यहॉं सुनी-
'रिश्ते में जिस्म का साथ नहीं होता है , रिश्ता रूह का होता है।'
पर यह भरोसा जरुर करता हूँ कि‍ वि‍वाह भी रुहानी रि‍श्‍ते की मंजि‍ल पा सकता है।

दीपक कुमार भानरे said...

व्यवसायिकता के इस युग मैं , यह धारणा बन गई है की हर काम पैसों के लिए किए जाते हैं . किंतु आप जैसे लोग इस बात को नकार कर लेखन मैं आदर्श स्थापित कर रहे हैं .
साथ यह भी कहना चाहूँगा की , विवाह की रिश्ते को भी प्यार और आपसी समझ और त्याग की भावना से दिली रिश्तों को कायम रखा जा सकता है .

सुशील छौक्कर said...

आज का जमाना पैसे का जमाना है। इसलिए हर काम पैसे से ही तोला जाता है। पर कुछ किरणें है आप जैसी जो किसी ज़ज्बें के खातिर अपना काम कर जाती है। इस जज्बे को सलाम।

मोहन वशिष्‍ठ said...

इसी को कहते हैं बिना लोभ के किसी की सच्‍चे मन से इज्‍जत करना और फिर लेखन में तो *** वाह जी वाह

डॉ .अनुराग said...

अपना काम ऐसे ही करते रहिये....बस ...

vijaymaudgill said...

सही कहा स्नेह का कोई मोल नहीं होता। हर चीज़ पैसे के लिए ही नहीं लिखी जाती। वैसे मैं भी उस जोड़ी का मुरीद हूं। मैं दोनों को पढ़ता हूं। सच कहा उन्होंने
जिस्म का साथ, साथ नहीं होता
कदरों-कीमतों का साथ, साथ होता है।
अच्छा लगा पढ़कर

Ek ziddi dhun said...

amrita ki bhakt hain aap

Anonymous said...

dil se dil ka milan koi kam to nahin. jo aapki bhavnaon ko samajh le wah aapka hai,tab riste me koun kya lagta hai koi fark nahin padta.
--govind goyal sriganganagar journalist

Anonymous said...

अच्छा कहा। किसी चीज का बुरा लग सकता है। विनोद श्रीवास्तव की कविता है-
चोट तो फ़ूल से भी लगती है
सिर्फ़ पत्थर कड़े नहीं होते।

आपको अमृता प्रीतम के ऊपर लिखे लेख पर पेमेंन्ट की बात पत्थर सरीखी लगी। :)
लिखती रहें।

Tarun said...

रिश्ते पर लिखी बात बहुत पसंद आयी

ओमकार चौधरी । @omkarchaudhary said...

अच्छी भावना है लेकिन ऑफिस वालों की क्या गलती है ? जो व्यवस्था है, उसी के तहत उन्होंने फ़ोन किया. आप नहीं भागती होंगी पैसे के पीछे, आज का सच ये ही है कि बिना दाम के कोई काम नहीं करता. लेखक को भी अपना नजरिया बदलना होगा. रिश्ता अपनी जगह है, रोजी-रोटी अपनी जगह. रोटी का खर्चा पैसे से ही निकलता है. भूखे पेट तो भजन भी नहीं हो सकता. इसलिए आती हुई लक्ष्मी को प्रणाम करिए. वो अमृता प्रीतम से रिश्ते में कहाँ बाधक बनती है ? वैसे आपकी भावना को सलाम है.

manvinder bhimber said...

आप मेरे ब्लॉग पर आए . इसके लिए शुक्रिया. मैं आपको बताना चाहूंगी की आफिस के फोन को सुन कर जो भाव मेरे मन में आए , वही मैंने इमानदारी से लिखे हैं. ओमकार जी ने कहा है की पैसे के बिना जिंदगी नही चलती है.....सही है ....... मेरे विचार से अधिकाश अखबारों में अपने स्टाफर के लिए ख़ास पेज पर लिखने के अलग नियम होते हैं.....कहीं पैसा दिया जाता है तो कहीं नहीं .....मेरे यहाँ क्या नियम है ...ये मुझे नहीं पता है. ये बात उस समय मेरे दिमाग में आई भी नहीं ...... उस समय दिमाग में यही आया की मैंने तो प्यार में लिखा था.....और मुझे पैसे की बात पूछी जा रही है.

Mrinal said...

सारे लिखे को पढ़ गई. इमरोज को पढ़ कर जीवन के कई दृश्य सामने उमड़ने-गुमड़ने लगे. अच्छा लगा.

seema gupta said...

जिस्म का साथ साथ नहीं होता है
कदरों कीमतों का साथ
ही साथ होता है
और ये साथ
हमेशा साथ रहता है
"very impressive artical to read"
Regards

Anonymous said...

sach kaha....aap amrita pritam ki bahut badi prashansk lagti hein....aapki rachnaon mei kuch unki chaap si lagti hai....

Anonymous said...

sach kaha....aap amrita pritam ki bahut badi prashansk lagti hein....aapki rachnaon mei kuch unki chaap si lagti hai....

rimjhim/rita

रंजू भाटिया said...

बहुत अच्छा लाग यह पढ़ कर ..अमृता के एक लफ्ज़ के आगे पैसे क्या मायने रखते हैं ..

Advocate Rashmi saurana said...

Sach me Amrita ji ke bare me jitana likhe utana hi kam hai.

मुन्ना कुमार पाण्डेय said...

badhiya ,
bahut badhiya ,
bahut hi badhiya...

shelley said...

sachcha pyar aaj v kam dekhne ko milte hain . sach pyar karne k liye jo dil chiye wo sabkpaas nahi hota.

makrand said...

yes u said right words
these blessing keeps us cool
regards

नवीन दत्त बगौली said...

kuch ceja ajeve lagte to ha laken hote nahe,apako atapata laga ya ap jana laken esama atpata jasa kuch nahe, ku ke lekh kare he hamara gharo ma cula jalata ha. sab ape ke taraha ka pasawala nahe hota. yade ape ve hamama samel hote to apko atpata nahe lagta. laken apana jo mhasus keya vahe lekha yaha thek ha. kafe achach ja rahe ha.subkamnaya......

कडुवासच said...

प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।

Anonymous said...

Bahut Khub,

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

अच्छे लोग जो होते हैं ...उनके आस-पास अक्सर ही फूल खिले होते हैं .....उनके होने भर से एक तसल्ली सी होती है....अच्छे लोग धरती के लिए एक सौगात हैं .... ऐसी सौगातों के लिए तो उपरवाला भी उनका शुक्रगुजार हो जाता है !!