खैर.....
मैंने एक लेख हिन्दुस्तान के मयूरपंख के लिए लिखा जो इमरोज से हुई बातचीत पर आधारित है...इसमे एक नज्म भी है जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया....ओ अज्ज मेरे वि नाल है ( वो आज भी मेरे साथ है )
उस कविता को भी मेने लेख में शामिल किया ये लेख ३१ अगस्त के हिन्दुस्तान के सभी एडिशन में लेकिन छपा है.... सोचती इसे आप को पड़ा दूँ ......आपको कैसा लगा ?????और हाँ .....इमरोज से हुई कई बातें भी आपसे शेअर करनी है .....लेकिन अगली बार .....
10 comments:
पढ़ा था यह ...तब भी अच्छा लगा था ..:)
अखबार मे तब तो नही पढ़ा था पर आज पढ़ लिया अच्छा लगा।
"earlier also i said that you are so lucky to have this experience with them personally, and it is reallya great to read your blog. loved it"
Regards
अमृता प्रीतम को पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है...मैंने उनकी पंजाबी में कई किताबें पढ़ी हैं...
इस लेख को यहाँ देने का शुक्रिया। क्योंकि पिछले दिनों बाहर रहने के कारण मैं इसे पढ नहीं सका था।
श्रेष्ठ है लेखन आपका,
आगे की कड़ियों की
प्रतीक्षा करेंगे.
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अमृता प्रीतम को पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है...लेख को यहाँ देने का शुक्रिया...!!
अच्छा है!
Bahut accha hai.
अमृता जी मेरी सदा पसंदीदा लेखिका रहीं हैं | आपको उनसे रु-ब-रु कराते रहने के लिए धन्यबाद | आज आपने सरकारी दोहे पढ़े होंगे कल नई रचना मुख्यमंत्री की आशीर्वाद यात्रा पढाने का प्रयास करेंगे
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