Friday, October 31, 2008

फुल मोया पर महक न मोई

ब्लाग पर अकसर अमृता और इमरोज के बारे में लिखी गई पोस्ट पर जो कमेंट आते हैं उनमें इमरोज के होने या फिर उन जैसा होने पर ताज्जुब किया जाता है। कुछ उन्हें बहुत उम्दा इंसान भी बताते हैं मैंने इमरोज से पूछा, क्या आप जानते हैं कि अमृता को पढ़ कर कुछ ऐसी भी हैं जो अपने हिस्से के इमरोज को ढूढ़ती हैं। वे अपनी सरल मुसकान होठों पर ला कर कहते हैं, इसके लिये पहले अमृता होना पड़ता है। वे सच कहते हैं, आज की औरत भले ही कितना भी आगे जा चुकी है, तरक्की कर चुकी है, लेकिन वह अपनी मर्जी से जीने के लिये सोच भी नहीं सकती है। अगर उसने ऐसा किया तो उसे समाज की नाराजगी झेलनी पड़ती है। अमृता होना आसान नहीं, बहुत कठिन है। हालात की तल्लखियों को झेलना आसान नहीं होता है, अमृता ने झेला, ओढ़ा और अपने भीतर कहीं जज्ब कर लिया जो समय समय पर सृजन के रूप में अक्षर अक्षर होता रहा।
इमरोज को जब अमृता मिलीं ......उस समय दोनों के बीच न कोई सवाल था न जवाब। बस एक अहसास था जिसे दोनों रूह से महसूस करते थे। इमरोज कहते हैं , जो एक दूसरे को समझते हैं, पसंद करते हैं, वे सवाल कहां करते हैं। जब सवाल नहीं तो जवाब की दरकार कहां रह जाती है। इमरोज के अल्फाजों में.........

एक बार
वक्त ने पूछा
ये तेरी क्या लगती है
मैंने हंस कर वक्त से कहा
अच्छा लगता
अगर सवाल ये होता
ये तेरी क्या क्या नहीं लगती है ??

आज के दिन अमृता इस जहाँ से हमेशा के लिए चली गईं ......
ख़ुद ही ये भी कह गईं

कैसी है इसकी खुशबू
फूल मुरझा गया पर महक नहीं मुरझाई
कल होठों से आई थी
आज आंसुओं से आई है

Wednesday, October 22, 2008

मुझे एक अनकही कविता नजर आती है

ब हम किसी से प्यार करते हैं तो उसे जताने या बताने की जरूरत नहीं होती है, वो अपने आप गहराता है और एक खुशबू की तहर से हमारे आसपास बिखर रहता है। कई बार हमारे नजदीक से गुजरने वाले भी उस भाव को जानने लगते हैं । सज्जाद हैदर अमृता के काफी अच्छे दोस्त थे। यह बात इमरोज को पता थी। एक बार इमरोज और अमृता ने मिल कर सज्जाद को खत लिखा तो सज्जाद ने जवाब दिया, ''मेरे दोस्त मैं कभी तुमसे मिला तो नहीं लेकिन अमृता के खतों से जो मैंने तुम्हारी तस्वीर बनायी है, उससे मैं तुम्हे जानने लगा हूं, तुम खुशनसीब हो, मैं तुम्हें सलाम करता हूं।'' अमृता इमरोज से कभी कुछ छिपाती नहीं थी। अपनी मौत से पहले सज्जाद ने अमृता को लिखे सारे खत वापस लौटा दिये। बात कुछ भी नहीं थी, अमृता के दिल में पता नहीं क्या आया, अमृता ने इमरोज को कहा, ''लो पढ़ लो '' इमरोज ने कहा ''नहीं, इसकी जरूरत नहीं है।'' अमृता ने कहा , ''तो जला दो, '' इमरोज ने जला दिये। इमरोज कहते हैं, अमृता ने अपने प्यार का इजहार कभी खुले 'शब्दों में नहीं किया, न ही मुझे इसकी जरूरत पड़ी। इमरोज और अमृता का रिश्ता अनोखा रिश्ता था जिसकी न तब कोई परिभाशा थी न आज। दरअसल, अमृता ने जो दुशाला ओढ़ा , वह सिर्फ़ इमरोज की मोहब्बत से महकता था। मेरी जब भी इमरोज से बात होती है, वे कहते हैं, ''मैं ठीक हूं,खुश हूं'' लेकिन मन कई सवाल करता है और इमरोज को देख कर उनके जवाब मिल जाते हैं .इमरोज कहते हैं

ओ जदों वी मैनूं मिलन आंदी है
मैंनूं इक अनलिखी कविता दिसदी है
मैं इस अनलिखी कविता नूं किन्नी वार लिख चुका हाँ
फेर वी एह कविता अनलिखी रह जांदी है
कि पता
एह अनलिखी कविता लिखन वास्ते न होवे
सिर्फ मनचाही जिंदगी वास्ते होवे
(हिंदी अनुवाद)
वो जब भी मुझे मिलने आती है
मुझे एक अनकही कविता नजर आती है
मैं इस अनलिखी कविता को कई बार लिख चुका हूं
फिर भी ये कविता अनलिखी रहजाती है
क्या पता
ये अनलिखी कविता
लिखने के लिये न हो
सिर्फ मनचाही जिंदगी के लिये हो

Saturday, October 18, 2008

वे रब तेरा भला करे

प्रेम के अर्थ कब क्या हो जाएं, कुछ नहीं कहा जा सकता। न जाने किस अर्थ को मानते हुए एक बार अमृता जी ने इमरोज को कह दिया, 'तुम तो अभी जवान हो, जाओ कहीं ओर जा कर बस जायो। तुम अपने रास्ते जाओ और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।' इमरोज ने जवाब दिया,' तुम जानती तो हो कि मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता है, और मेरा अभी मरने का इरादा नहीं है।'अमृता जी कभी कभी दिल से बहुत कमजोर हो उठती, ऐसे ही एक पल में उन्होंने इमरोज को कह दिया'जाओं, तुम दुनिया देख कर आयो, देखो तो इसमें तुम्हारे लिये क्या क्या रखा हुआ है। अगर दुनिया देख कर लौट आये और तुमने मेरा साथ चाहा तो मैं वैसा ही करूंगी जैसा तुम कहोगे 'इमरोज उठे और कमरे को चक्कर काट कर अमृता के पास आ बैठे, बोले, लो मैं दुनिया घूम आया, अब बोलो क्या कहती हो?सालों बाद जब इस बात को इमरोज को मैंने याद दिलाया तो वे हंस दिए क्योंकि आज तो बंदा अगले कदम या अगली गली जा कर रिश्ते को भूल जाता है। मैंने उनसे पूछा कि अब जमाने को क्या हो गया है्, क्यों घट रही है रिश्तों की कद्र, कहां गये कद्रों कीमतों वाले रिश्ते, मेरे सवाल के बाद उन्होंने एक नज्म सुनायी,

अमृता जब भी खुश होती
मेरे छोटी छोटी बातों पर
तो वो कहती
वे रब तेरा भला करे

और मै जवाब में
कहता
मेरा भला तो कर भी दिया
रब ने
तेरी सूरत में आ कर

Thursday, October 2, 2008

हां! प्यार की तस्वीर देखी जा सकती है.......

जब हम प्यार में होते हैं तो कभी कभी अंदर से काफी कमजोर हो जाते हैं, यह कमजोरी भावनाओं में दिखना शुरू हो जाती है। इसे मैंने तब महसूस किया जब किसी ने मेरे छोटे बेटे के लिये बताया कि इसके साथ कोई दुर्घटना होगी। मैं डर गई। मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया, दिल ने ज्यादा सोचना शुरू कर दिया। कई पंडितों के चक्कर काटे, सभी ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है। उसके ग्रह ठीक हैं। कईयों ने उपचार भी बताए, वे भी मैंने कर दिये लेकिन मन तो डर ही गया था एक बार को। इसके लिये मुझे साइक्लोजिस्ट से अपनी अपनी कांउसलिंग भी करनी पड़ी, ताकि दिमाग काम करे, दिल जरा कम सोचे। अब सोचती हूं, सब की चिंता रब करेगा, मैं क्यों चिंता करूं ? ऐसा ही अमृता प्रीतम जी के साथ भी हुआ। इमरोज के साथ रहने से पहले उन्होंने ज्योतिषी से पूछा, ये रिश्ता केसा रहेगा? ज्योतिशी ने कहा,ढायी घंटे, वे चौकीं, फिर अंदर से उन्हें लगा कि ज्योतिशी का हिसाब कच्चा है क्योंकि उसके पास प्रेम की नजर ही नहीं है। प्रेम के हिसाब से चला रिश्ता आज भी जिंदा है, सच तो यह था कि वे इमरोज को खोना नहीं चाहती थी। वे कभी कभी अपने उपन्यासों और नज्मों में भी ऐसे सवाल छोड़ती रहीं हैं जो यह बताते हैं कि व्यक्ति प्यार में काफी कमजोर भी हो सकता है। एक पल में प्यार आपका संबल है तो दूसरे ही पल खो जाने के भय से कहीं मन में कमजोरी भी आती है। इमरोज को तो इस रिश्ते पर पूरा भरोसा था। अब यह रिश्ता अक्षरों में जिंदा है। इस नज्म में प्यार के बारे में इमरोज कहते............


प्यार में

मन कवि हो जाता है

ये कवि

कविता लिखता नहीं

कविता जीता है

सारे शब्द सारे रंग

मिल कर भी प्यार की तस्वीर नहीं बना पाते है।

हां! प्यार की तस्वीर देखी जा सकती है

मोहब्बत जी रही जिंदगी के आइने में