Thursday, February 27, 2014
अमृता को रूलाता था शिव
Saturday, March 7, 2009
ऐ वूमेन विद माइंड
Sunday, January 11, 2009
तीन दिन अब सारे मेरे
तीन दिनों की भी एक कहानी है जब अमृता और इमरोज साथ साथ नहीं रहते थे।यूंही एक दिन अमृता को इमरोज ने बताया कि उसे एक नौकरी मिल गई है, वह मुंबई जा रहे हैं। अमृता यह जान कर तो खुश हुई कि अपनी खुशी को सबसे पहले इमरोज ने उसी के साथ बांटा है लेकिन यह सोच का उदास हो गई कि इमरोज दूर चले जायेंगे। उस दिन अमृता ने आंखों की नमी को किताब के पीछे छिपा लिया, कहा कुछ नहीं। जाने में तीन दिन थे, अमृता ने इमरोज से कहा, अब ये तीन दिन मेरे हैं, इन्हें मैं अपने हिसाब से खर्च करूंगी।
बहुत बाद में उन तीन दिनों को अमृता की कलम ने कुछ यूं कहा
कलम ने आज गीतों का काफिया तोड़ लिया है
मेरा इश्क यह किस मुकाम पर आ गया है
उठो अपनी गागर से पानी की कटोरी दे दो
मैं राहों के हादसे उस पानी से धो लुंगी
सालों साल गुजर जाने के बाद इमरोज ने उन तीन दिनों को अपनी नज्म में कुछ यूं उतारा।
हम मस्त चल रहे
यह बात तब की है
जब मैं दिल्ली छोड़ कर
दूसरे शहर रवाना हो रहा था
जाने में अभी तीन दिन बाकी
और तुमने कहा थाये तीन दिन अब सारे मेरे
मौसम पीले फूलों का
सड़कें बाग बगीचे पीले फूलों की महक से सराबोर
हमने सारा दिन पीले फूलों के बीच
एक दूजे को चुपचाप देखते हुए
नजरों से एक दूसरे को
कुछ कहते कुछ सुनते हुए
पीले फूल हम पर बरस रहे
कभी हमारे दिलों
कभी हमारी सोचों
वक्त को तो नहीं
लेकिन खामोशी को कहीं यह पता था
कि ये तीन दिन जिंदगी के
Thursday, December 4, 2008
फलक से उतरी बातें
एक बार अमृता और मैं सड़क पर चले जा रहे थे, तब हम साथ साथ नहीं रहते थे। अमृता को न जाने क्या सूझी, रूकी और पूछने लगीं,
तू पहले वी किसे ना इंज तुरिया एं
(तुम पहले भी इस तरह से किसी के साथ चले हो )
मैंने कहा,
मैं तुरिया ते बोत हां पर किसे नाल जागिया
(चला तो बहुतों के साथ हूं लेकिन जागा किसी के साथ नहीं।)
मेरी बात सुन कर अमृता ने मुझे गौर से देखा , जैसे कुछ जानने और समझने का प्रयास कर रही हो, फिर कुछ मिनट बाद उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और वो मेरा हाथ पकड़ कर ऐसे चलने लगी जैसे उसने सारी हदे। सरहदें पर कर ली हो, उसके चेहरे पर एक अनोखा गर्व मैंने उस दिन महसूस किया। उस दिन एक गहरे रिश्ते ने जन्म ले लिया था।
आगे चल कर उनका यह रिश्ता ऐसा बना जो रगों में बहते खून की तरह हो गया। सच तो यह है कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसे रिश्ते को पहली बार महसूस किया था।
एक जगह अमृता ने लिखा भी है,रिश्ते भी बड़ी अजीब चीज हैं। इनके अर्थ भी अलग हैं। कोई रिश्ता गले में पहने हुए कपड़े की तरह से होता है जिसे कभी भी गले से उतारा जा सकता है पर कोई रिश्ता नसों में बहते हुए खून की तरह से होता है जिसके बिना इंसान जिंदा नहीं रह सकता है। कोई रिश्ता ऐसा भी होता है जो बदन की खुजली की तरह से होता है , नाखूनों से खरोंच कर उसे कोई जितना भी हटाना चाहे, उतना ही वह बदन की चमड़ी में रसे जाता है। रिश्तों की इतनी गहरी बयानी अमृता ने क्यों कर की, ये फिर कभी सही----
Monday, November 10, 2008
ऐसी थी मेरी अमृता
मैंने इमरोज से पूछा , आप क्या सोचते हैं अमृता के बारे , उनके वजूद के बारे में। वे हंस दिये और अपनी एक नज्म सुनाने लगे।
उन्होंने नज्म पंजाबी में सुनायी जिसे मैं हिंदी में अनुवाद कर प्रस्तुत रही हूं । नजम का नाम है ''मनचाही ''
सपना सपना हो कर
औरत हुई
और अपनी मर्जी का सोचा
फिक्र फिक्र हो के
कविता हुई
वारिस शाह को जगाया
और कहा
देख ले
अपने पंजाब को लहुलुहान
मोहब्बत मोहब्बत हो कर
राबिया हुई
किसी को भी
नफरत करने से इंकार किया
और अपने वजूद से बताया
कि मोहब्बत कभी नफरत नहीं करती
जिन्दगी जिंदगी हो कर
वो मनचाही हुई
मनचाहा लिखा
और मनचाहा जिया
पूछा, राबिया कौन थी, वे बोले, जिसने पवित्रा कुरआन से खिलाफत कर दी थी
Friday, October 31, 2008
फुल मोया पर महक न मोई
इमरोज को जब अमृता मिलीं ......उस समय दोनों के बीच न कोई सवाल था न जवाब। बस एक अहसास था जिसे दोनों रूह से महसूस करते थे। इमरोज कहते हैं , जो एक दूसरे को समझते हैं, पसंद करते हैं, वे सवाल कहां करते हैं। जब सवाल नहीं तो जवाब की दरकार कहां रह जाती है। इमरोज के अल्फाजों में.........
एक बार
वक्त ने पूछा
ये तेरी क्या लगती है
मैंने हंस कर वक्त से कहा
अच्छा लगता
अगर सवाल ये होता
ये तेरी क्या क्या नहीं लगती है ??
आज के दिन अमृता इस जहाँ से हमेशा के लिए चली गईं ......
कैसी है इसकी खुशबू
फूल मुरझा गया पर महक नहीं मुरझाई
कल होठों से आई थी
आज आंसुओं से आई है
Wednesday, October 22, 2008
मुझे एक अनकही कविता नजर आती है
जब हम किसी से प्यार करते हैं तो उसे जताने या बताने की जरूरत नहीं होती है, वो अपने आप गहराता है और एक खुशबू की तहर से हमारे आसपास बिखर रहता है। कई बार हमारे नजदीक से गुजरने वाले भी उस भाव को जानने लगते हैं । सज्जाद हैदर अमृता के काफी अच्छे दोस्त थे। यह बात इमरोज को पता थी। एक बार इमरोज और अमृता ने मिल कर सज्जाद को खत लिखा तो सज्जाद ने जवाब दिया, ''मेरे दोस्त मैं कभी तुमसे मिला तो नहीं लेकिन अमृता के खतों से जो मैंने तुम्हारी तस्वीर बनायी है, उससे मैं तुम्हे जानने लगा हूं, तुम खुशनसीब हो, मैं तुम्हें सलाम करता हूं।'' अमृता इमरोज से कभी कुछ छिपाती नहीं थी। अपनी मौत से पहले सज्जाद ने अमृता को लिखे सारे खत वापस लौटा दिये। बात कुछ भी नहीं थी, अमृता के दिल में पता नहीं क्या आया, अमृता ने इमरोज को कहा, ''लो पढ़ लो '' इमरोज ने कहा ''नहीं, इसकी जरूरत नहीं है।'' अमृता ने कहा , ''तो जला दो, '' इमरोज ने जला दिये। इमरोज कहते हैं, अमृता ने अपने प्यार का इजहार कभी खुले 'शब्दों में नहीं किया, न ही मुझे इसकी जरूरत पड़ी। इमरोज और अमृता का रिश्ता अनोखा रिश्ता था जिसकी न तब कोई परिभाशा थी न आज। दरअसल, अमृता ने जो दुशाला ओढ़ा , वह सिर्फ़ इमरोज की मोहब्बत से महकता था। मेरी जब भी इमरोज से बात होती है, वे कहते हैं, ''मैं ठीक हूं,खुश हूं'' लेकिन मन कई सवाल करता है और इमरोज को देख कर उनके जवाब मिल जाते हैं .इमरोज कहते हैं
ओ जदों वी मैनूं मिलन आंदी है
मैंनूं इक अनलिखी कविता दिसदी है
मैं इस अनलिखी कविता नूं किन्नी वार लिख चुका हाँ
फेर वी एह कविता अनलिखी रह जांदी है
कि पता
एह अनलिखी कविता लिखन वास्ते न होवे
सिर्फ मनचाही जिंदगी वास्ते होवे
(हिंदी अनुवाद)
वो जब भी मुझे मिलने आती है
मुझे एक अनकही कविता नजर आती है
मैं इस अनलिखी कविता को कई बार लिख चुका हूं
फिर भी ये कविता अनलिखी रहजाती है
क्या पता
ये अनलिखी कविता
लिखने के लिये न हो
सिर्फ मनचाही जिंदगी के लिये हो